Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-30)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


ठीक दो बजे किशनलाल अपनी बेटी परी और पत्नी चम्पा के साथ कोठी पर पहुंच गया।वह वहां पहुंच कर कोठी के यार्ड में नीचे फर्श पर बैठ गया ।साथ ही चम्पा और परी भी नीचे जमीन पर बैठ गये ।परी बार बार अपने बापू से पूछ रही थी कि हम यहां क्यों आये है?

जब वो लोग आये तब राज अपने कमरे में किसी से फोन पर बातें कर रहा था शायद कोई अस्पताल से जरूरी फोन था।तभी नयना ने आकर बताया कि किशनलाल अपनी फैमिली के साथ आ गया है।जब राज ने ये बात सुनी तो उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा "इसका मतलब परी भी आ गई है ओहहह मन बड़ा बेचैन हो रहा है । मैं कैसे अपने आप को उसकी आंखों की कशिश से बचा पाऊंगा।"

यही सब सोचता हुआ वो जब नीचे आया और जैसे ही उसने देखा परी नीचे जमीन पर बैठी है तो उसने दौड़कर उसे उठाया और बोला,"तुम पागल हो क्या? जमीन पर क्यों बैठी हो । चलों उठों।"

उसकी इस प्रकार आदेशात्मक बातें जैसे परी को चाबी के खिलौने की तरह चला रही थी वह तुरंत वहां से उठ गयी और जहां सोफे पर राज उसे बैठाना चाहता था वहीं जाकर बैठ गयी।ऐसा लग ही नहीं रहा था कि चेतन अवस्था में ये उनकी पहली मुलाकात है ।वह एकटक राज को देखें जा रही थी ऐसे जैसे बरसों से भटक रही रूह को उसका सुकून मिल गया हो।

जो लड़की अभी तक अपने बापू को ये कह कह कर परेशान कर रही थी कि मुझे यहां क्यों लाये हो?वहीं अब उस घर में ऐसे बैठी थी जैसे ये उसी का घर है।

किशनलाल भी ये बात देख रहा था कि जो बेचैनी परी को सारा दिन रहती थी वो राज बाबू को देखकर एकदम शांत हो गई थी।वह बड़े ही प्यार से उसे देख रही थी।

ये परी का पहला परिचय था राज के साथ पर ऐसे लग रहा था जैसे ये तो कभी से एक दूसरे को जानते हो।


नयना भी किचन से चाय बनाते हुए ये सब देख रही थी और मन ही मन खीज रही थी।तभी भूषण प्रसाद शास्त्री जी को लेकर आ गये ।राज ने जब दोनों को साथ देखा तो पूछ ही लिया,"अंकल शास्त्री जी आप को कहां मिले?"


"अरे रास्ते में पैदल ही चले आ रहे थे ।।आज मैं साइट से जल्दी आ गया तो मैं इन्हें गाड़ी में बैठा लिया।"


शास्त्री जी ने जब परी की तरफ देखा तो एकदम से जैसे पूरे शरीर में करंट सा दौड़ गया और अचानक से उनके मुंह से निकल गया,


"ओहहह चंद्रिका"


तभी भूषण प्रसाद ने सब को शांत रहने को कहा । शास्त्री जी कुछ मत तक उसी अवस्था में खड़े रहे तभी भूषण प्रसाद बोले,

"शास्त्री जी मैंने आप को बताया था ना अपने माली किशनलाल की बेटी परी है ये।"


"मुझे पता है बरसों से तड़प रही आत्मा आज चैन पा जाएंगी ।आज अपने प्रियतम से जा मिलेंगी।"


शास्त्री जी स्टडी रूम की ओर चल पड़े और पीछे पीछे सभी लोग चल पड़े।आज स्टडी रूम में बैठने की दूसरी व्यवस्था की गयी थी सोफ़ा सिर्फ दो ही थे और बैठने वाले इतने लोग इसलिए दो तीन कुर्सियां भी डाल दी गई थी ‌। शास्त्री जी सामने वाले सोफे पर और उनकी बगल में भूषण प्रसाद बैठ गये थे ।परी ,नयना दाये और बायें और राज बीच में बैठा सामने सोफे पर , किशनलाल और उसकी पत्नी चम्पा कुर्सियों पर बैठ गये।

शास्त्री जी ने संदूकची में से किताब निकाली और उस पर हाथ रखा । थोड़ी देर हाथ रखने के बाद भी उन्हें कोई अहसास नहीं हुआ तभी परी जोर जोर से हंसने लगी और बोली," आप जिस कहानी को उस किताब में ढूंढ रहे हैं उससे आगे की कहानी उसमें है ही नहीं ।जब कोई जिंदा रहेगा तभी तो लिखेगा कि उसके साथ क्या क्या घटित हुआ।"


सभी लोग सकपका गये और परी की तरफ देखने लगे । अचानक से एक तेज का जा गया था उसके चेहरे पर और वह शून्य में निहारते हुए बोल रही थी । शास्त्री जी ने किताब खोली तो वास्तव में पाया कि जो कहानी वो अपने योगफल से बता रहे थे उससे आगे की कहानी उसमें है ही नहीं ।

तभी परी बोली,"आप सब मेरी यानि चंद्रिका की कहानी जानने के उत्सुक होंगे कि आगे क्या हुआ तो मैं बताती हूं आगे क्या हुआ ।


" मैंने देव को बोल दिया था कि मैं मां के बगैर कुंदनपुर से नहीं जाऊंगी और मेरा देव भी मान गया था ।हम प्यार के हिंडोले में झूलते हुए अपने भविष्य के सपने बुन रहे थे कि तभी एक खंजर सनसनाता हुआ आया और मेरे देव की पीठ में घुस गया ।मेरी चीख निकल गयी मैने देखा देव की पीठ से गरम-गरम लहू की धार बह निकली थी जिसने सारे फर्श को लाल कर दिया था ।मैं तो पागलों की तरह दौड़ रही थी कभी अपनी ओढ़नी को उसकी कमर से खून को पोंछ रही थी तो कभी पूरे कमरे में दौड़कर ये देख रही थी कि क्या उपाय करूं कि भूरे देव का दर्द शांत हो जाए ।पता नहीं किसने खंजर मारा था मेरे देव को । ईश्वर की सौगंध मैं उस वक्त उस के हजारों टुकड़े कर देती ।देव की सांसें धीमे-धीमे चल रही थी और मेरा विलाप शुरू था "देव। तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते । देखो आंखें बंद मत करना वरना तुम्हारी चंद्रिका भी दम तोड़ देगी तुम्हारे बगैर ।"


तभी एक और खंजर सनसनाता हुआ आया और मेरी पीठ में घुस गया ।एक जोरदार खून का फव्वारा बह चला ।देव ने हल्के से आंख खोलकर देखा और बोला ,"चंद्रिके तुम मानने वाली नहीं हो  तुम भी साथ ही चलोगी।"

"बिल्कुल देवदत्त के बगैर चंद्रिका का कोई अस्तित्व नहीं है।  हे ईश्वर मुझे खंजर मारने वाले का धन्यवाद वरना मेरी सांसें अपने देव के बगैर मेरे शरीर में अटकी ही रह जाती। 

देव ओ मेरे देव मुझ से वादा करो जब जब मेरा जन्म धरती पर होगा * तुम्हें आना ही पड़ेगा "

ये कहकर मैं देव की ओर देखने लगी ।देव ने भी सिर हिलाकर हामी भरी और हम दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और दोनों की गर्दन एक ओर को लुढ़क गयी।"


इतना कहकर परी का चेहरा तमतमा गया और वह बोले जा रही थी।


कहानी अभी जारी है………

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